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"राजमार्ग पर / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

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10:48, 15 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

राजमार्ग पर सिसक रहे हैं
गेहूँ, मक्का, धान
धीरे-धीरे उघर रहा है
सत्ता का परिधान

ज़ख़्म चीरकर
खेत सींचकर
उम्मीदों की रेत सींचकर
खोज रहे हैं पैंसठ प्रतिशत
अपना हिन्दुस्तान

प्रतिरोधी स्वर
पाँव मोड़कर
हर ठोकर से आस जोड़कर
कौर-कौर में चाह रहे हैं
फिर अपनी पहचान

ताज़ा-बासी
रंग सियासी
जुमलों की दिन-रात उबासी
पछुआ-पुरवा बनकर कबसे
भेद रहे हैं कान।