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"शरणावरुद्ध / गीता त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
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20:13, 25 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
जब खुल्थ्यो साँझको ढोका
यसरी खुल्थे एकैचोटि घरहरू
मानौं घरभित्रै छन् सहस्र घरहरू...
एकैचोटि सुरुहुन्थ्यो साँझको चहलपहल
घरभित्रै थिए, तिनका केही घरहरू
जीवनभित्रै थिए, तिनका केही जीवनहरू
रातभित्रै थिए, बिहानका सुरिला गीतहरू
तिनीहरूकै भाकामा गाउनु
तिनीहरूकै लयमा निदाउनु
साँच्चै कत्ति सकुन थियो
जीवन तिनीहरूकै चिरबिरमा रमाउनू..
सुदुर सम्बन्धका कथाहरू छन् त्यस तखतामा।
मौनताको अथाह आँधी बोकेका गौंथलीहरू
डुबेका छन्-
विस्थापनाका शोकहरूमा
मान्छेले भने कहिले सुन्ने हो शोकको प्रतिध्वनि!