"एक नए सवेरे की तलाश / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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शिखर सर करण्यासाठी. | शिखर सर करण्यासाठी. | ||
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+ | एकु नए भुरारे की भँड़ाई / रश्मि विभा त्रिपाठी | ||
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+ | जिय निरौ अकुतान्यौ | ||
+ | सुस्त ह्वै | ||
+ | लटपटान्यौ | ||
+ | नियारौ हैबे चहतु हुतो सपुननि तैं | ||
+ | अँसुआ जीवन माँझ घुरि चुके हुते | ||
+ | जिमि मदिरा मैं बरफ की डिलिया | ||
+ | जु पै बाइ हारिबैं नाहिं ओ | ||
+ | बा मौंगी सी दीसिबे बारी छोरी | ||
+ | हरबईं उठाई बहोरी | ||
+ | बैसाखी टूटत भए सपुननि की | ||
+ | अनदेखी अरु आस कौं हाँक दई | ||
+ | अरु पहाड़ी पगडाँडी पै धाई | ||
+ | करिबे एकु नए भुरारे की भँड़ाई | ||
+ | जदपि नाहिं जानति बु | ||
+ | कित्तौ चलिबैं ह्वैहै अजौं | ||
+ | चोटी फतेह करिबे कौं। | ||
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08:18, 26 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
बहुत परेशान था मन,
शिथिल होकर
लड़खड़ा गया था।
अलगाव चाहता था सपनों से;
आँसू जिन्दगी में घुल चुके थे
जैसे- शराब में बर्फ की डली;
लेकिन शायद उसे हारना नहीं था।
उस शान्त-सी दिखने वाली लड़की ने
फिर से चुपचाप उठाई;
बैशाखी- टूटते हुए सपनों की,
अपेक्षा और आशा को आवाज़ दी
और चल पड़ी पहाड़ी पगडंडी पर
एक नए सवेरे की तलाश में
जबकि नहीं जानती वह
कितना चलना होगा अभी?
चोटी फतह करने को।
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एका नवीन पहाटेच्या शोधात
मराठी अनुवाद: डॉ. सुरेन्द्र हरिभाऊ बोडखे
खूप अस्वस्थ होते मन,
सुस्त होउन
डळमळून गेले होते.
वेगळे व्हायचे होते स्वप्नांपासून;
जीवनात अश्रू विरघळले होते
जसे- दारू मध्ये बर्फाचे तुकडे;
पण कदाचित तिला हरायच नव्हतं.
त्या शांतशा दिसणाऱ्या मुलीने
निमूटपणे पुन्हा उचलली
कुबडी - तुटलेल्या स्वप्नांची,
अपेक्षा आणि आशेला आवाज दिला
आणि चालून गेली डोंगराच्या वाटेवर
एका नवीन पहाटेच्या शोधात
जरी तिला माहित नव्हतं
अजून किती चालायचे आहे?
शिखर सर करण्यासाठी.
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ब्रज अनुवादः
एकु नए भुरारे की भँड़ाई / रश्मि विभा त्रिपाठी
जिय निरौ अकुतान्यौ
सुस्त ह्वै
लटपटान्यौ
नियारौ हैबे चहतु हुतो सपुननि तैं
अँसुआ जीवन माँझ घुरि चुके हुते
जिमि मदिरा मैं बरफ की डिलिया
जु पै बाइ हारिबैं नाहिं ओ
बा मौंगी सी दीसिबे बारी छोरी
हरबईं उठाई बहोरी
बैसाखी टूटत भए सपुननि की
अनदेखी अरु आस कौं हाँक दई
अरु पहाड़ी पगडाँडी पै धाई
करिबे एकु नए भुरारे की भँड़ाई
जदपि नाहिं जानति बु
कित्तौ चलिबैं ह्वैहै अजौं
चोटी फतेह करिबे कौं।
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