भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाशिए पर प्रेम लिखना / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
|||
| पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
'''ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?''' | '''ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?''' | ||
'''हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?''' | '''हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?''' | ||
| − | <poem> | + | -0- |
| + | ब्रज अनुवाद: | ||
| + | हाँसिए पै नेह लिखिबौ/ रश्मि विभा त्रिपाठी | ||
| + | |||
| + | एकु संझा | ||
| + | नयन आले | ||
| + | जियरा की धरती भींजी भई | ||
| + | अनुभवी मोरे दुखनि की बास | ||
| + | अरु बानैं बोयौ नेह कौ बीज | ||
| + | निसदिन सपन जल सौं सींचि | ||
| + | चुमकारि सौं उपजिबे जोग करति रह्यौ | ||
| + | बिगर आस ई मरुधर | ||
| + | आजु मोरे नयननि भीतर | ||
| + | सोई मानुष हेरतु | ||
| + | नेह कौ वट बिरिछ, साँचेहुँ | ||
| + | ऊसर मैं बीज बोइबौ पाप ऐ का? | ||
| + | हाँसिए पै नेह लिखिबौ बुरौ ऐ का? | ||
| + | -0- | ||
| + | |||
| + | </poem> | ||
08:38, 26 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
एक शाम;
आँखें नम
दिल की ज़मीं भीगी हुई,
महसूस की मेरे ग़मों की गन्ध
और उसने बोया- प्रेमबीज।
प्रतिदिन स्वप्नजल से सींचकर,
चुम्बनों से उर्वरा करता रहा
बिन अपेक्षा ही मरुधरा को।
आज मेरी आँखों में-
वही शख़्स खोजता है-
प्रेम का वटवृक्ष, हाँ।
ऊसरों में बीज बोना गुनाह है क्या ?
हाशिए पर प्रेम लिखना बुरा है क्या?
-0-
ब्रज अनुवाद:
हाँसिए पै नेह लिखिबौ/ रश्मि विभा त्रिपाठी
एकु संझा
नयन आले
जियरा की धरती भींजी भई
अनुभवी मोरे दुखनि की बास
अरु बानैं बोयौ नेह कौ बीज
निसदिन सपन जल सौं सींचि
चुमकारि सौं उपजिबे जोग करति रह्यौ
बिगर आस ई मरुधर
आजु मोरे नयननि भीतर
सोई मानुष हेरतु
नेह कौ वट बिरिछ, साँचेहुँ
ऊसर मैं बीज बोइबौ पाप ऐ का?
हाँसिए पै नेह लिखिबौ बुरौ ऐ का?
-0-
