भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"पीड़ा का संसार / सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुरंगमा यादव }} {{KKCatKavita}} <poem> विचलित कर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:23, 27 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

विचलित कर पाएगा मुझको
क्या यह पीड़ा का संसार
पीड़ाएँ बन अंतर्दृष्टि
जीवन रहीं निखार
सुमन देखकर लोभी बनना
मुझे नहीं स्वीकार
मुस्काते अधरों से ज्यादा
सजल नयन से प्यार
गहरा है करुणा का सागर
कितने हुए न पार
कुहू-कुहू में रमकर भूलूँ
कैसे करुण पुकार
दुख है अपना सच्चा साथी
सुख तो मिला उधार
तुम्हें रुठना था ही मुझसे
भाती क्यों मनुहार
प्रेम तुम्हारा कैसा था ये
जैसे हो उपकार।