"पागल / लक्ष्मीप्रसाद देवकोटा" के अवतरणों में अंतर
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− | + | जरूर साथी म पागल ! | |
− | यस्तै छ मेरो हाल! | + | यस्तै छ मेरो हाल । |
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+ | म शब्दलाई देख्दछु ! | ||
+ | दृश्यलाई सुन्दछु ! | ||
+ | बासनालाई स्वाद लिन्छु । | ||
+ | आकाशभन्दा पातला कुरालाई छुन्छु । | ||
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ती कुरा, | ती कुरा, | ||
− | जसको अस्तित्व लोक | + | जसको अस्तित्व लोक मान्दैंन |
− | जसको आकार संसार जान्दैन! | + | जसको आकार संसार जान्दैन ! |
− | म देख्दछु ढुङ्गालाई | + | म देख्दछु, ढुङ्गालाई फूल ! |
− | जब, | + | जब, जलकिनारका जल चिप्ला ती, |
− | कोमलाकार पाषाण, | + | कोमलाकार, पाषाण, |
चाँदनीमा, | चाँदनीमा, | ||
− | + | स्वर्गकी जादूगर्नी मतिर हाँस्दा, | |
पत्रिएर, नर्मिएर, झल्किएर, | पत्रिएर, नर्मिएर, झल्किएर, | ||
− | बल्किएर उठ्दछन् मूक | + | बल्किएर, उठ्दछन् मूक पागलझैँ, |
− | + | फूलझैँ- एक किसिमका चकोर फूल ! | |
+ | |||
म बोल्दछु तिनसँग, जस्तो बोल्दछन् ती मसँग | म बोल्दछु तिनसँग, जस्तो बोल्दछन् ती मसँग | ||
− | एक भाषा, साथी! | + | एक भाषा, साथी ! |
जो लेखिन्न, छापिन्न, बोलिन्न, | जो लेखिन्न, छापिन्न, बोलिन्न, | ||
− | बुझाइन्न, सुनाइन्न | + | बुझाइन्न, सुनाइन्न । |
− | जुनेली | + | जुनेली गङ्गा-किनार छाल आउँछ तिनको भाषा |
− | साथी! | + | साथी ! छाल छाल ! |
− | जरुर साथी म पागल! | + | जरुर साथी म पागल ! |
− | यस्तै छ मेरो हाल! | + | यस्तै छ मेरो हाल ! |
+ | तिमी चतुर छौ, म वाचाल ! | ||
+ | तिम्रो शुद्ध गणित सूत्र हरहमेशा चलिरहेको छ | ||
+ | मेरो गणितमा एकबाट एक झिके | ||
+ | एकै बाँकी रहन्छ ! | ||
+ | तिमी पाँच इन्द्रियले काम गर्छौ, | ||
+ | म छैटौँले ! | ||
+ | तिम्रो गिदी छ साथी ! | ||
+ | मेरो मुटु । | ||
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तिमी गुलाफलाई गुलाफ सिवाय देख्न सक्तैनौ, | तिमी गुलाफलाई गुलाफ सिवाय देख्न सक्तैनौ, | ||
− | म उसमा हेलेन र | + | म उसमा हेलेन र पद्मिनी पाउँछु, |
− | तिमी बलिया गद्य छौ! | + | तिमी बलिया गद्य छौ ! |
− | म तरल पद्य छु! | + | म तरल पद्य छु ! |
− | तिमी जम्दछौ जब म | + | तिमी जम्दछौ जब म पग्लन्छु, |
− | तिमी | + | तिमी सँग्लन्छौ जब म धमिलो बन्छु, |
− | र ठीक | + | र ठीक त्यसैका उल्टो ! |
− | तिम्रो संसार ठोस छ | + | तिम्रो संसार ठोस छ । |
− | मेरो बाफ! | + | मेरो बाफ ! |
− | तिम्रो बाक्लो, मेरो पातलो! | + | तिम्रो बाक्लो, मेरो पातलो ! |
तिमी ढुङ्गालाई वस्तु ठान्दछौ, | तिमी ढुङ्गालाई वस्तु ठान्दछौ, | ||
− | ठोस कठोरता तिम्रो यथार्थ छ | + | ठोस कठोरता तिम्रो यथार्थ छ । |
म सपनालाई समात्न खोज्दछु, | म सपनालाई समात्न खोज्दछु, | ||
जस्तो तिमी, त्यो चिसो, मीठो अक्षर काटेको | जस्तो तिमी, त्यो चिसो, मीठो अक्षर काटेको | ||
− | + | पान्ढीकीको बाटुलो सत्यलाई ! | |
− | मेरो छ | + | मेरो छ वेग काँडाको साथी ! |
− | तिम्रो सुनको र हीराको | + | तिम्रो सुनको र हीराको ! |
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− | + | तिमी पहाडलाई लाटा भन्दछौ, | |
− | + | म भन्छु वाचाल । | |
− | + | जरुर साथी । | |
− | + | मेरो एक नशा ढिलो छ । | |
− | + | यस्तै छ मेरो हाल । | |
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− | म | + | |
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08:12, 28 अगस्त 2024 का अवतरण
जरूर साथी म पागल !
यस्तै छ मेरो हाल ।
म शब्दलाई देख्दछु !
दृश्यलाई सुन्दछु !
बासनालाई स्वाद लिन्छु ।
आकाशभन्दा पातला कुरालाई छुन्छु ।
ती कुरा,
जसको अस्तित्व लोक मान्दैंन
जसको आकार संसार जान्दैन !
म देख्दछु, ढुङ्गालाई फूल !
जब, जलकिनारका जल चिप्ला ती,
कोमलाकार, पाषाण,
चाँदनीमा,
स्वर्गकी जादूगर्नी मतिर हाँस्दा,
पत्रिएर, नर्मिएर, झल्किएर,
बल्किएर, उठ्दछन् मूक पागलझैँ,
फूलझैँ- एक किसिमका चकोर फूल !
म बोल्दछु तिनसँग, जस्तो बोल्दछन् ती मसँग
एक भाषा, साथी !
जो लेखिन्न, छापिन्न, बोलिन्न,
बुझाइन्न, सुनाइन्न ।
जुनेली गङ्गा-किनार छाल आउँछ तिनको भाषा
साथी ! छाल छाल !
जरुर साथी म पागल !
यस्तै छ मेरो हाल !
तिमी चतुर छौ, म वाचाल !
तिम्रो शुद्ध गणित सूत्र हरहमेशा चलिरहेको छ
मेरो गणितमा एकबाट एक झिके
एकै बाँकी रहन्छ !
तिमी पाँच इन्द्रियले काम गर्छौ,
म छैटौँले !
तिम्रो गिदी छ साथी !
मेरो मुटु ।
तिमी गुलाफलाई गुलाफ सिवाय देख्न सक्तैनौ,
म उसमा हेलेन र पद्मिनी पाउँछु,
तिमी बलिया गद्य छौ !
म तरल पद्य छु !
तिमी जम्दछौ जब म पग्लन्छु,
तिमी सँग्लन्छौ जब म धमिलो बन्छु,
र ठीक त्यसैका उल्टो !
तिम्रो संसार ठोस छ ।
मेरो बाफ !
तिम्रो बाक्लो, मेरो पातलो !
तिमी ढुङ्गालाई वस्तु ठान्दछौ,
ठोस कठोरता तिम्रो यथार्थ छ ।
म सपनालाई समात्न खोज्दछु,
जस्तो तिमी, त्यो चिसो, मीठो अक्षर काटेको
पान्ढीकीको बाटुलो सत्यलाई !
मेरो छ वेग काँडाको साथी !
तिम्रो सुनको र हीराको !
तिमी पहाडलाई लाटा भन्दछौ,
म भन्छु वाचाल ।
जरुर साथी ।
मेरो एक नशा ढिलो छ ।
यस्तै छ मेरो हाल ।