"भातेहरू अझै लिगलिगकोटको दौडमा छन् / सरुभक्त" के अवतरणों में अंतर
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरुभक्त |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatNepaliRach...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 7: | पंक्ति 7: | ||
{{KKCatNepaliRachna}} | {{KKCatNepaliRachna}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | + | सन्त्रासका शिविरहरुमा बन्द | |
− | + | हिमालका मनहरु टेकेर | |
− | + | बोरा गाउ“का गलैंचाप्रसादहरु कता लागे ? | |
− | + | चेपे र मस्याङ्दी दोभानका | |
− | + | कथाव्यथाहरुलाई | |
− | + | चुइगमका धागाले बुन्दै, | |
− | + | असमय झरीको रातमा रुझेपछि | |
− | + | एकाबिहानै | |
− | + | कथित सभाचौतारोका अकथित बिम्बहरु संगालेर | |
− | + | म टाढा कुहिरोको देशमा हराएको छु | |
− | + | नजिकै प्रकृतिले खाल्टो खनेका | |
− | + | पहाडका तरेलीहरुमा | |
− | + | कतै टिनका छाना टल्केका छन् | |
− | + | कतै टौवाका भित्ता चर्केका छन् | |
− | + | समयका आग्नेय गतिमा | |
− | + | के के बले ? के के जले ? | |
− | + | जिन्दगीका प्रायद्घिपमा | |
− | + | सागर हराएका आत्माहरु उस्तै छन् | |
− | + | अवशिष्ट भजनहरुमा | |
− | + | हा“सेहा“से झैं | |
− | + | असमय फुलेका लालिगु“रास ओठहरुमा | |
− | + | नाचेनाचे झैं, | |
− | + | परिवेशमा कताकतै प्राचीन अर्वाचीन ध्वनिहरु सुनिन्छ | |
− | + | पैचो मागेका विश्वासहरु झैं | |
− | + | सिस्नुका झ्याङ्मा लुकेका सपनाहरुलाई सोध | |
− | + | उनीहरुको हावा कता छन् ? | |
− | + | उनीहरुका पानी कता छन् ? | |
− | + | फागुको दिन | |
− | + | आदिम तृष्णाको यात्रामा हिड्दै गर्दा | |
− | + | शीत रोएका बाटाहरुमा | |
− | + | एउटी गाउ“ले आमा थालमा अबीर लिएर | |
− | + | ‘ ए बाबु ’ भन्दै भेट्न आउ“छिन् | |
− | + | सायद परदेशिएको छोराको प्रतिबिम्ब दुखेर | |
− | + | ममताको अतल गहिराईंमा, | |
− | + | देशमा सदियौं देखि आमाका सपनाहरु हराइरहेका छन् | |
− | + | देशमा सदियौं देखि बाबुका सपनाहरु हराइरहेका छन् | |
− | + | र शहिदका सपनाहरु | |
− | + | अनास्थाका गोली लागेर | |
− | + | क्षतविक्षत भई ढलिरहेका छन् | |
− | + | तर भष्मासुर भातेहरु लिगलिगकोटको दौडमा छन् | |
− | + | भातेहरु अझैं लिगलिग कोटको दौडमा छन् । | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | र | + | |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
</poem> | </poem> |
21:58, 28 अगस्त 2024 के समय का अवतरण
सन्त्रासका शिविरहरुमा बन्द
हिमालका मनहरु टेकेर
बोरा गाउ“का गलैंचाप्रसादहरु कता लागे ?
चेपे र मस्याङ्दी दोभानका
कथाव्यथाहरुलाई
चुइगमका धागाले बुन्दै,
असमय झरीको रातमा रुझेपछि
एकाबिहानै
कथित सभाचौतारोका अकथित बिम्बहरु संगालेर
म टाढा कुहिरोको देशमा हराएको छु
नजिकै प्रकृतिले खाल्टो खनेका
पहाडका तरेलीहरुमा
कतै टिनका छाना टल्केका छन्
कतै टौवाका भित्ता चर्केका छन्
समयका आग्नेय गतिमा
के के बले ? के के जले ?
जिन्दगीका प्रायद्घिपमा
सागर हराएका आत्माहरु उस्तै छन्
अवशिष्ट भजनहरुमा
हा“सेहा“से झैं
असमय फुलेका लालिगु“रास ओठहरुमा
नाचेनाचे झैं,
परिवेशमा कताकतै प्राचीन अर्वाचीन ध्वनिहरु सुनिन्छ
पैचो मागेका विश्वासहरु झैं
सिस्नुका झ्याङ्मा लुकेका सपनाहरुलाई सोध
उनीहरुको हावा कता छन् ?
उनीहरुका पानी कता छन् ?
फागुको दिन
आदिम तृष्णाको यात्रामा हिड्दै गर्दा
शीत रोएका बाटाहरुमा
एउटी गाउ“ले आमा थालमा अबीर लिएर
‘ ए बाबु ’ भन्दै भेट्न आउ“छिन्
सायद परदेशिएको छोराको प्रतिबिम्ब दुखेर
ममताको अतल गहिराईंमा,
देशमा सदियौं देखि आमाका सपनाहरु हराइरहेका छन्
देशमा सदियौं देखि बाबुका सपनाहरु हराइरहेका छन्
र शहिदका सपनाहरु
अनास्थाका गोली लागेर
क्षतविक्षत भई ढलिरहेका छन्
तर भष्मासुर भातेहरु लिगलिगकोटको दौडमा छन्
भातेहरु अझैं लिगलिग कोटको दौडमा छन् ।