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"शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!/ सुरंगमा यादव" के अवतरणों में अंतर

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शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
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    शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
  दीप को अपना सब कुछ मान
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    दीप को अपना सब कुछ मान
      दीप निशा का साथी बनता
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        तम से घिरा तनिक ना डरता
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दीप निशा का साथी बनता
        तूफ़ानों से आँख मिलाए
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तम से घिरा तनिक ना डरता
        संग हवा के झूमे जाए
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तूफ़ानों से आँख मिलाए
        पर ना जाने प्रिय की पीर
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संग हवा के झूमे जाए
        प्रेम का कर न सका प्रतिदान
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पर जाने प्रिय की पीर
        शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
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    प्रेम का कर न सका प्रतिदान
          दीप को अपना सब कुछ मान
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      प्रेम तुम्हारा अतिशय प्यारा
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    शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
      तन-मन तुमने मुझ पर वारा
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    दीप को अपना सब कुछ मान
    प्रेम पाश में मैं बँध जाऊँ
+
 
        फिर कैसे कर्त्तव्य निभाऊँ
+
प्रेम तुम्हारा अतिशय प्यारा
        तम की सीमा पर सुन प्यारे
+
तन-मन तुमने मुझ पर वारा
        प्रहरी सजग तू मुझको जान
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प्रेम पाश में मैं बँध जाऊँ
          शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
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फिर कैसे कर्त्तव्य निभाऊँ
            दीप को अपना सब कुछ  मान
+
तम की सीमा पर सुन प्यारे
          जब तक मुझमें ज्योति है ये
+
    प्रहरी सजग तू मुझको जान
          राह दिखाना ही बस ध्येय
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          जीवन पल-पल बीता जाता
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    शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
          पल में हँसता जी भर आता
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    दीप को अपना सब कुछ  मान
          मैं तो तब तक जलता जाऊँ
+
 
          जब तक आ ना जाये विहान
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जब तक मुझमें ज्योति है ये
          शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण!
+
राह दिखाना ही, बस, ध्येय
          दीप को अपना सब कुछ मान।
+
जीवन पल-पल बीता जाता
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पल में हँसता जी भर आता
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मैं तो तब तक जलता जाऊँ
 +
    जब तक आ न जाए विहान
 +
 
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    शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
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    दीप को अपना सब कुछ मान।
 
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16:36, 30 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

     शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
     दीप को अपना सब कुछ मान ।

दीप निशा का साथी बनता
तम से घिरा तनिक ना डरता
तूफ़ानों से आँख मिलाए
संग हवा के झूमे जाए
पर न जाने प्रिय की पीर
     प्रेम का कर न सका प्रतिदान ।

     शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
     दीप को अपना सब कुछ मान

प्रेम तुम्हारा अतिशय प्यारा
तन-मन तुमने मुझ पर वारा
प्रेम पाश में मैं बँध जाऊँ
फिर कैसे कर्त्तव्य निभाऊँ
तम की सीमा पर सुन प्यारे
     प्रहरी सजग तू मुझको जान ।

     शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
     दीप को अपना सब कुछ मान ।

जब तक मुझमें ज्योति है ये
राह दिखाना ही, बस, ध्येय
जीवन पल-पल बीता जाता
पल में हँसता जी भर आता
मैं तो तब तक जलता जाऊँ
     जब तक आ न जाए विहान ।

     शलभ ने त्यागे फिर-फिर प्राण !
     दीप को अपना सब कुछ मान।