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"मोमबत्ती की शिखा / भूपी शेरचन / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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19:25, 31 अगस्त 2024 के समय का अवतरण

शुभ्र, शान्त और स्निग्ध
शिखा मोमबत्ती की
मानो,
पहली बार के रजस्वला के बाद
नहा कर
शारदीय धूप में
अपनी यौवन को बिखेरकर
थकी-थकी सी
चकित-चकित सी
अकेले में मुस्कराती
सूरत है यह किसी
सुंदर नवयुवती की।
शुभ्र, शान्त और स्निग्ध
शिखा मोमबत्ती की।

आंखों में वेदना की नमी
लेकिन, खुशी से हंस रही हैं पुतलियाँ
मानो, सर्जरी के बाद
होश में आकर
भयंकर पीड़ा में भी
सिर को थोड़ा सा उठाकर
नवजात शिशु को निहार रही
संतुष्ट दृष्टि है यह
किसी मातृ की।
शुभ्र, शान्त और स्निग्ध
शिखा मोमबत्ती की ।

एक तरफ दमक दमक कर
चमक रहा है चेहरा,
दूसरी तरफ टपक-टपक कर
बह रही है अश्रु-धारा,
मानो यह किसी विधवा का
उस पल का चेहरा है,
जब उसे स्मृति हुई हो
एक साथ
सुहागरात और स्वर्गीय पति की
शुभ्र, शान्त और स्निग्ध
शिखा मोमबत्ती की ।

०००
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यहाँ तल क्लिक गरेर यस कविताको मूल नेपाली पढ्न सकिनेछ-
मैनबत्तीको शिखा / भूपी शेरचन