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"लालसा / हरिभक्त कटुवाल / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाउँगा
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पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
इतिहास पढाते हैँ वहाँ,  
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इतिहास पढ़ाते हैं वहाँ,
जंग लगे मेसिनो के पूर्जे जैसे  
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जंग लगे मशीनों के पुर्जों जैसे
मरे हुए दिनों का,  
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मरे हुए दिनों का,
और अब तो गणित के सुत्र भी बहुत ही पूराने हो चुके
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और अब तो गणित के सूत्र भी बहुत पुराने हो चुके हैं।
  
इच्छा नहीं है मुझे  
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इच्छा नहीं है मुझे
केवल इतिहास के पन्नो पे जीवित रहना,
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केवल इतिहास के पन्नों पे जीवित रहना,
मुझे तो जिना है आनेवाले दिनों में  
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मुझे तो जीना है आने वाले दिनों में
इतिहास की गति को लाँघकर  
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इतिहास की गति को लाँघकर
इतिहास से ज्यादा और ही कुछ हो कर ।
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इतिहास से कुछ ज्यादा हो कर।
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इसलिए पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाउँगा
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इतिहास पढाते हैँ वहाँ, मरे हुए दिनों का ।
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फ्रेम लगाकर रखनेवाले आदर्शों से  
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इसलिए, पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
भोग सकनेवाले आदर्श मुझे ज्यादा अच्छा लगता हैँ ।
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वहाँ इतिहास पढ़ाते हैं, मरे हुए दिनों का।
बना बनाया हुवा रास्ते पे चलने की बजाए
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रास्ते बनाते हुए चलने को मन करता है ।
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फ्रेम में सजाकर रखने वाले आदर्शों से
इतिहास के पोथीयाँ नहीं
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जीवन में भोगे जा सकने वाले आदर्श मुझे ज्यादा अच्छे लगते हैं।
एक कुदाल चाहिए मेरे बाजुओं को,  
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बना-बनाया रास्ता चलने के बजाय
योजनाओँ से नहीं
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रास्ते बनाते हुए चलने को मन करता है।
अपने पावँ से नापना है मुझे उँची उँची चोटीयों को  
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इतिहास की पोथियाँ नहीं,
और अदा करना है धरती के सारे ऋणों को ।
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एक कुदाल चाहिए मेरे बाजुओं को,
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योजनाओं से नहीं,
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अपने पाँव से नापना है मुझे ऊँची-ऊँची चोटियों को,
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और अदा करना है धरती के सारे ऋणों को।
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पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
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वहाँ इतिहास पढ़ाते हैं, मरे हुए दिनों का।
  
पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाउँगा
 
इतिहास पढाते हैँ वहाँ, मरे हुए दिनों का ।
 
 
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08:07, 1 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
इतिहास पढ़ाते हैं वहाँ,
जंग लगे मशीनों के पुर्जों जैसे
मरे हुए दिनों का,
और अब तो गणित के सूत्र भी बहुत पुराने हो चुके हैं।

इच्छा नहीं है मुझे
केवल इतिहास के पन्नों पे जीवित रहना,
मुझे तो जीना है आने वाले दिनों में
इतिहास की गति को लाँघकर
इतिहास से कुछ ज्यादा हो कर।

इसलिए, पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
वहाँ इतिहास पढ़ाते हैं, मरे हुए दिनों का।

फ्रेम में सजाकर रखने वाले आदर्शों से
जीवन में भोगे जा सकने वाले आदर्श मुझे ज्यादा अच्छे लगते हैं।
बना-बनाया रास्ता चलने के बजाय
रास्ते बनाते हुए चलने को मन करता है।
इतिहास की पोथियाँ नहीं,
एक कुदाल चाहिए मेरे बाजुओं को,
योजनाओं से नहीं,
अपने पाँव से नापना है मुझे ऊँची-ऊँची चोटियों को,
और अदा करना है धरती के सारे ऋणों को।

पिताजी, मैं स्कूल नहीं जाऊँगा
वहाँ इतिहास पढ़ाते हैं, मरे हुए दिनों का।