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"अभी खिलना वाकी है / अभि सुवेदी / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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<poem>लगता है
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आज रात भर मेँ
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लगता है
सूरज को किसी ने कुरेद दिया ।
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आज रात भर में
जाने क्योँ
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सूरज को किसी ने कुरेद दिया।
आज पौ फुट्ते ही
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जाने क्यों
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आज पौ फटते ही
 
किसी ने सूरज को
 
किसी ने सूरज को
रास्ते पे जमे पानी मेँ फेँक दिया ।
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रास्ते पर जमे पानी में फेंक दिया।
  
कहते हैँ
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कहते हैं
यह तो मात्र शुरुवात है।
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यह तो मात्र शुरुआत है।
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सूरज को अब फैलकर हरेक की आँखों तक पहुँचना है
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सूरज – कल सोचा हुआ पर देखा न हुआ दृश्य,
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को अब खुलना है।
  
सूरज को अब फैलकर हरेक की आँखोँ तक पहुँचना है
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गुसलखाने में कहीं बादल बनकर रहा हुआ समय
सूरज – कल सोचा हुवा पर देख न पाया हुवा दृष्टी,
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सूरज के स्पर्शों को पिघलाने
को अब खुलना है ।
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दौड़कर बाहर आ रहा है।
 
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कहते हैं
गुसलखाने में कहीँ बादल बन कर रहा हुवा समय
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तुम आ तो चुके हो
सूरज के स्पर्शोँ को पिघलाने
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दौड कर बाहर आ रहा है ।
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कहते हैँ
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तूम आ तो चुके हो
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लेकिन
 
लेकिन
अभी खिलना बाकीँ है ।
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अभी खिलना बाकी है।
 
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15:49, 1 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

लगता है
आज रात भर में
सूरज को किसी ने कुरेद दिया।
जाने क्यों
आज पौ फटते ही
किसी ने सूरज को
रास्ते पर जमे पानी में फेंक दिया।

कहते हैं
यह तो मात्र शुरुआत है।
सूरज को अब फैलकर हरेक की आँखों तक पहुँचना है
सूरज – कल सोचा हुआ पर देखा न हुआ दृश्य,
को अब खुलना है।

गुसलखाने में कहीं बादल बनकर रहा हुआ समय
सूरज के स्पर्शों को पिघलाने
दौड़कर बाहर आ रहा है।
कहते हैं
तुम आ तो चुके हो
लेकिन
अभी खिलना बाकी है।