भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"अभिनय / गण्डकीपुत्र / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= गण्डकीपुत्र |अनुवादक=सुमन पोखरे...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Sirjanbindu (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | छुप जाते | + | छुप जाते हैं सब कुछ |
− | जहर | + | जहर रखें या अमृत |
− | जीवन | + | जीवन रखें या मृत्यु |
पर्दा लग जाने के बाद | पर्दा लग जाने के बाद | ||
− | बाहर से कुछ दिखाई नहीं | + | बाहर से कुछ दिखाई नहीं देता |
− | दिखाई देता है सिर्फ | + | दिखाई देता है सिर्फ पर्दा। |
− | जिस तरह पोटली के | + | जिस तरह पोटली के अंदर |
− | मांस | + | मांस डालकर चलने पर भी |
− | + | सत्तू डालकर चलने पर भी | |
− | दिखाई देती है सिर्फ पोटली | + | दिखाई देती है सिर्फ पोटली |
− | वैसा ही है पर्दा लगना | + | वैसा ही है पर्दा लगना भी। |
− | + | ||
− | मुझे कहीं भी दिखाई नहीं दिया | + | मुझे कहीं भी दिखाई नहीं दिया |
− | पर्दा न लगा | + | पर्दा न लगा हुआ एक भी चेहरा |
− | + | आईने के सामने खड़े हो कर | |
− | खुद को देखते हुए भी | + | खुद को देखते हुए भी |
पर्दा नजर आता है मुझे | पर्दा नजर आता है मुझे | ||
− | अपना चेहरा दिखाई देने से | + | अपना चेहरा दिखाई देने से पहले। |
</poem> | </poem> |
16:10, 1 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण
छुप जाते हैं सब कुछ
जहर रखें या अमृत
जीवन रखें या मृत्यु
पर्दा लग जाने के बाद
बाहर से कुछ दिखाई नहीं देता
दिखाई देता है सिर्फ पर्दा।
जिस तरह पोटली के अंदर
मांस डालकर चलने पर भी
सत्तू डालकर चलने पर भी
दिखाई देती है सिर्फ पोटली
वैसा ही है पर्दा लगना भी।
मुझे कहीं भी दिखाई नहीं दिया
पर्दा न लगा हुआ एक भी चेहरा
आईने के सामने खड़े हो कर
खुद को देखते हुए भी
पर्दा नजर आता है मुझे
अपना चेहरा दिखाई देने से पहले।