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"माँ के बारे में / धिरज राई / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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अब, कैसे करूँ मैं माँ का परिभाषा?
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अगर पूछा होता मेरे बारे में तो
 
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हर रोज जो खबर पढ्ते हो तुम
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उसका निर्लज्ज पात्र
 
उसका निर्लज्ज पात्र
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तुम्हारी कविता में रहनेवाला भयानक विम्व
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तुम्हारी कविता में रहनेवाला भयानक विम्ब
जो हर वक्त तुम्हारे ही विरुद्ध में रहता है
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जो हर वक्त तुम्हारे ही विरुद्ध रहता है
वो मैं हूँ । 
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राजनीति का कारखाना में निरन्तर प्रशोधन होनेवाला
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राजनीति के कारखाने में निरंतर प्रशोधन होनेवाला
अपराधका नायक
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अपराध का नायक
मैं हूँ ।
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मैं हूँ।
  
तुम्हारे जानकारी में कभी भी नआने वाले गैह्रकानूनी धन्धे,
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तुम्हारी जानकारी में कभी भी न आने वाले गैरकानूनी धंधे,
किसी शक के बहैरह मान लिया जाने वाले झूठ,
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किसी शक के बिना मान लिया जाने वाला झूठ,
आकाश से ज्यादा फैला हुवा लालच के आँखेँ,
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आकाश से भी ज्यादा फैला हुआ लालच की आँखें,
सगरमाथा से उँचा घमण्ड,
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सगरमाथा से ऊँचा घमंड,
कर्तव्य को कभी भी याद कर नसकने वाला हठी दिमाग,
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कर्तव्य को कभी भी याद न करने वाला हठी दिमाग,
संवेदनोओँ के लाशोँ के उपर हसतेँ रहने वाला मानवीयता,
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संवेदनाओं के शवों के ऊपर हँसते रहने वाली मानवीयता,
सभी सभी मैं हूँ ।
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सभी-सभी मैं हूँ।
  
ना पूछना था, पूछ ही तो लिया
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ना पूछना था, पूछ ही लिया
बस्, इतना कह सकता हूँ-
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बस, इतना कह सकता हूँ—
 
माँ के साथ रहने तक
 
माँ के साथ रहने तक
मैं  
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मैं
सब से अच्छा था ।
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सबसे अच्छा था।
 
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17:12, 1 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

बड़ी मुश्किल में पड़ गया
अब, कैसे करूँ मैं माँ की परिभाषा?

अगर पूछा होता मेरे बारे में तो
आसानी से कह सकता था—
हर रोज़ जो खबर पढ़ते हो तुम
उसका निर्लज्ज पात्र
मैं हूँ।

तुम्हारी कविता में रहनेवाला भयानक विम्ब
जो हर वक्त तुम्हारे ही विरुद्ध रहता है
वो मैं हूँ।

राजनीति के कारखाने में निरंतर प्रशोधन होनेवाला
अपराध का नायक
मैं हूँ।

तुम्हारी जानकारी में कभी भी न आने वाले गैरकानूनी धंधे,
किसी शक के बिना मान लिया जाने वाला झूठ,
आकाश से भी ज्यादा फैला हुआ लालच की आँखें,
सगरमाथा से ऊँचा घमंड,
कर्तव्य को कभी भी याद न करने वाला हठी दिमाग,
संवेदनाओं के शवों के ऊपर हँसते रहने वाली मानवीयता,
सभी-सभी मैं हूँ।

ना पूछना था, पूछ ही लिया
बस, इतना कह सकता हूँ—
माँ के साथ रहने तक
मैं
सबसे अच्छा था।