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"कुरूप कविता / भूपिन / सुमन पोखरेल" के अवतरणों में अंतर

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अकेली ही कब तक
 
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जी कर रहा है
 
जी कर रहा है
आज उसे कुरूप बना डालें| 
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आज उसे कुरूप बना डालें।
  
दुनियाँ की सब से कुरूप राज्यसत्ता में भी
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दुनिया की सबसे कुरूप राज्यसत्ता में भी
सब से सुन्दर दिखाई दे रही है कविता।
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सबसे सुंदर दिखाई दे रही है कविता।
हिंसा के  
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हिंसा के
सब से घिनौने समंदर में नहा कर भी
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सबसे घिनौने समंदर में नहा कर भी
सब से साफ-पाक हो के निकल रही है कविता।
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सबसे साफ-पाक हो कर निकल रही है कविता।
 
जी कर रहा है
 
जी कर रहा है
आज उसे कुरूप बना ही डालेँ।
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आज उसे कुरूप बना ही डालें।
  
आओ प्रिय कविजनो!
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आओ प्रिय कविजनों!
इस बार कविता को  
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इस बार कविता को
सुन्दरता की गुलामी से आजाद कराएं
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सुंदरता की गुलामी से आजाद कराएं,
कला के अनन्त बंधनोँ से मुक्ति दिलाये
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कला के अनंत बंधनों से मुक्ति दिलाएं,
और देखे-
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और देखें—
 
कविता का दीया बुझ जाने के बाद
 
कविता का दीया बुझ जाने के बाद
किस हद तक अँधियारी दिखाई देगी यह दुनिया
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किस हद तक अंधियारी दिखाई देगी यह दुनिया,
 
कितनी खोखली हो जाएगी रिक्तता?
 
कितनी खोखली हो जाएगी रिक्तता?
  
 
फर्क ही क्या है
 
फर्क ही क्या है
मन्दिर और बेश्यालय की नग्नता में?
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मंदिर और वेश्यालय की नग्नता में?
क्या अन्तर है  
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क्या अंतर है
संसद और श्मशानघाट की दुर्गन्धोँ में?
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संसद और श्मशानघाट की दुर्गंधों में?
किस बात पे अलग है
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किस बात पर अलग है
न्यायालयें और कसाई की दुकानें?
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न्यायालय और कसाई की दुकानें?
इन्हीं सब की दीवारोँ के बाहर
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इन्हीं सब की दीवारों के बाहर
सब से ज्यादा ईमानदार हो खड़ी रहती है कविता।
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सबसे ज्यादा ईमानदार हो खड़ी रहती है कविता।
  
 
जी कर रहा है
 
जी कर रहा है
आज उसे कुरूप बना डालेँ।
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आज उसे कुरूप बना डालें।
  
आओ प्रिय कविजनोँ!
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आओ प्रिय कविजनों!
आज ही घोषणा कर दिया जाये
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आज ही घोषणा कर दी जाए
कविता की मृत्यु की।  
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कविता की मृत्यु की।
और देखें-
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और देखें—
कितनी जीवंत दिखाई देगी  
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कितनी जीवंत दिखाई देगी
अपने ही लाश के ऊपर जन्मी कविता।
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अपने ही शव के ऊपर जन्मी कविता।
  
देखे
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देखें
 
कविता की मृत्यु की खुशी में
 
कविता की मृत्यु की खुशी में
किस जुनून तक पगलाएगा बन्दूक,
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किस जुनून तक पागल होगा बंदूक,
 
कितनी दूर तक सुनाई देगा सत्ता का अट्टहास,
 
कितनी दूर तक सुनाई देगा सत्ता का अट्टहास,
 
कितना फीका दिखाई देगा कला का चेहरा?
 
कितना फीका दिखाई देगा कला का चेहरा?
  
सुन्दर कविताएँ लिखने के लिए तो
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सुंदर कविताएँ लिखने के लिए तो
अभी और भी सुन्दर समय बाकी है।
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अभी और भी सुंदर समय बाकी है।
क्योँ आज मन हो रहा है कि
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क्यों आज मन हो रहा है कि
समय की अन्तिम सीढ़ी तक ना लिखा हुआ
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समय की अंतिम सीढ़ी तक न लिखी हुई
सब से ज्यादा कुरूप कविता लिख डालने का?
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सबसे ज्यादा कुरूप कविता लिख डालें?
जिस तरह बन्दूकेँ
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जिस तरह बंदूकें
शहीदों के सीने पे लिखा करते हैँ
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शहीदों के सीने पर लिखती हैं
हिंसा की कुरूप कविताएँ ।
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हिंसा की कुरूप कविताएँ।
  
 
अकेली कब तक
 
अकेली कब तक

17:30, 1 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

अकेली ही कब तक
सुन्दर हो के रहे कविता?
अकेली ही कब तक
सौन्दर्य का अविश्रान्त प्रेमी बनती रहे कविता?

जी कर रहा है
आज उसे कुरूप बना डालें।

दुनिया की सबसे कुरूप राज्यसत्ता में भी
सबसे सुंदर दिखाई दे रही है कविता।
हिंसा के
सबसे घिनौने समंदर में नहा कर भी
सबसे साफ-पाक हो कर निकल रही है कविता।
जी कर रहा है
आज उसे कुरूप बना ही डालें।

आओ प्रिय कविजनों!
इस बार कविता को
सुंदरता की गुलामी से आजाद कराएं,
कला के अनंत बंधनों से मुक्ति दिलाएं,
और देखें—
कविता का दीया बुझ जाने के बाद
किस हद तक अंधियारी दिखाई देगी यह दुनिया,
कितनी खोखली हो जाएगी रिक्तता?

फर्क ही क्या है
मंदिर और वेश्यालय की नग्नता में?
क्या अंतर है
संसद और श्मशानघाट की दुर्गंधों में?
किस बात पर अलग है
न्यायालय और कसाई की दुकानें?
इन्हीं सब की दीवारों के बाहर
सबसे ज्यादा ईमानदार हो खड़ी रहती है कविता।

जी कर रहा है
आज उसे कुरूप बना डालें।

आओ प्रिय कविजनों!
आज ही घोषणा कर दी जाए
कविता की मृत्यु की।
और देखें—
कितनी जीवंत दिखाई देगी
अपने ही शव के ऊपर जन्मी कविता।

देखें
कविता की मृत्यु की खुशी में
किस जुनून तक पागल होगा बंदूक,
कितनी दूर तक सुनाई देगा सत्ता का अट्टहास,
कितना फीका दिखाई देगा कला का चेहरा?

सुंदर कविताएँ लिखने के लिए तो
अभी और भी सुंदर समय बाकी है।
क्यों आज मन हो रहा है कि
समय की अंतिम सीढ़ी तक न लिखी हुई
सबसे ज्यादा कुरूप कविता लिख डालें?
जिस तरह बंदूकें
शहीदों के सीने पर लिखती हैं
हिंसा की कुरूप कविताएँ।

अकेली कब तक
सुन्दर हो के रहे कविता?