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विचारको रंग
किन यति फिक्का लाग्न थाल्यो !
पानी जस्तै
कुनै रंग मान्न नसकिने
जहाँ मिसियो
उस्तै देखिने
कुनै आकार ठान्न नसकिने
पातमा टल्किएको शीत
प्रभातको स्पर्शमा
फुङ्ग उडे जस्तै
विचार अडिन सकेन जीवनमा,
खै कसरी बाँच्न सक्छ उ
बाँकी जीवन
खण्ड / खण्ड भोगेर
भाँडीएको विचार बोकेर!
सधै/सधै आफैलाई ढाटेर
र आफैसंग भागेर ।
०००