भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कबड्डी / रंजना जायसवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= रंजना जायसवाल |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

01:06, 13 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण

कबड्डी! एक खेल
महज एक खेल नहीं
दर्शाता एक दृष्टिकोण
औरत के जीवन का
साथियों के हाथों का स्पर्श
सुकून देता अपनत्व का
हिम्मत देता है वह स्पर्श
लक्ष्य को भेदने का
मैदान में खींची लकीर
महज लकीर भर नहीं
चेताती है उनकी सीमा-रेखा
उनकी मर्यादा को
दुनिया देती है उदाहरण सीता का
और रोक देती है उनके कदमों को
काट देती है उनके पंखों
तोड़ देती है उनके सपनों को
लकीर के उस पार
हाथों का स्पर्श बदल जाता है,
आत्मा छली जाती है,
कदम रोके जाते हैं
सपने मरोड़े जाते हैं
और वह छटपटाती, कराहती
उस लकीर तक पहुँचने के लिए
अंतिम समय तक प्रयास करती है
उखड़ती है टूटती है
पर फिर भी कोशिशें जारी रहती है
उस लकीर तक पहुँचने की
सांसे टूट जाती है
और वह चेहरे
उफ्फ!किया है तो भुगतो
पसीने से लथपथ
शरीर सोचता है
हर बार ये संघर्ष
सिर्फ हमारे हिस्से ही क्यों.