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"घास / प्राणेश कुमार" के अवतरणों में अंतर
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रेत में भी जरा-सी नमी पाकर
जम जाती हैं ये
पाँव के नीचे
मखमली अहसास बन
गुनगुनाती हैं ये
इनके बिना
धरती बेजान हो टूटकर
वीरान लगने लगती है।
उखाड़ दो
छील दो नुकीले औजारो से
फेंक दो
जला दो अग्निकुंड में
फिर भी उगेंगी ये धरती की हरियाली बनकर
जीवन से भरी-भरी।