भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ताप / प्राणेश कुमार" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राणेश कुमार |अनुवादक= |संग्रह= }} {...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
01:13, 19 सितम्बर 2024 के समय का अवतरण
पहाड़ियाँ रखवाली करती हैं
मेरे गाँव की चारों ओर से
पलाश फ़ैल जाते हैं गाँव के आँचल में
पगडंडियों में टहलती है शीतल हवा
महुए की मादक सुगंध पसरती है पूरे गाँव में
यह हमारे लिए भोजन है
क्या इसे जान पाएँगे वे
जो काट रहें हैं इन्हे लगातार।
वे आते हैं हमारे गाँव में हमारे बनकर
वे आते हैं पहाड़ियों का सीना चीरकर
तहस नहस करते हैं हमारे गाँव को
वे बड़े निर्मम हो जाते हैं
हमारी आज़ादी को छीनना चाहते हैं वे,
वे रौंदते हैं हमारे जंगलों को - पेड़ों को
लाल - लाल पलाश वन को
फिर
हमारे गाँव के छायादार रास्तों पर
तपने लगता है सूरज।