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"भूल जाओ पुराने सपने (कविता) / नागार्जुन" के अवतरणों में अंतर

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सियासत में 
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न अड़ाओ 
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अपनी ये काँपती टाँगें 
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हाँ, महाराज !
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राजनीतिक फतवेवाजी से 
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अलग ही रक्खो अपने को
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माला तो है ही तुम्हारे पास
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नाम-वाम जपने को
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भूल जाओ पुराने सपने को
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न रह जाए, तो —
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राजघाट पहुँच जाओ
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बापू की समाधि से जरा दूर
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हरी दूब पर बैठ जाओ
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अपना वो लाल गमछा बिछाकर
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आहिस्ते से गुनगुनाना
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‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए
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जे पीर पराई जाणे रे’’
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देखना, 2 अक्टूबर के
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दिनों में उधर मत झाँकना
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-जी, हाँ, महाराज !
  
सियासत में <br>
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2 अक्टूबर वाले सप्ताह में  
न अड़ाओ <br>
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राजघाट भूलकर भी न जाना
अपनी ये काँपती टाँगें <br>
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उन दिनों तो वहाँ  
हाँ, मह्राज,<br>
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तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है  
राजनीतिक फतवेवाजी से <br>
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कुर्ता भी फट सकता है  
अलग ही रक्खो अपने को <br>
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हाँ, बाबा, अर्जुन नागा !
माला तो है ही तुम्हारे पास <br>
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नाम-वाम जपने को<br>
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भूल जाओ पुराने सपने को<br>
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न रह जाए, तो-<br>
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राजघाट पहुँच जाओ<br>
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हरी दूब पर बैठ जाओ<br>
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अपना वो लाल गमछा बिछाकर <br>
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आहिस्ते से गुन-गुनाना :<br>
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‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए <br>
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जे पीर पराई जाणे रे’’<br>
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देखना, 2 अक्टूबर के <br>
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दिनों में उधर मत झाँकना<br>
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-जी, हाँ, महाराज !<br>
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2 अक्टूबर वाले सप्ताह में <br>
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राजघाट भूलकर भी न जाना<br>
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उन दिनों तो वहाँ <br>
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तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है <br>
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कुर्ता भी फट सकता है <br>
+
हां, बाबा, अर्जुन नागा !
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03:15, 30 सितम्बर 2024 का अवतरण

सियासत में
न अड़ाओ
अपनी ये काँपती टाँगें
हाँ, महाराज !
राजनीतिक फतवेवाजी से
अलग ही रक्खो अपने को
माला तो है ही तुम्हारे पास
नाम-वाम जपने को
भूल जाओ पुराने सपने को
न रह जाए, तो —
राजघाट पहुँच जाओ
बापू की समाधि से जरा दूर
हरी दूब पर बैठ जाओ
अपना वो लाल गमछा बिछाकर
आहिस्ते से गुनगुनाना
‘‘बैस्नो जन तो तेणे कहिए
जे पीर पराई जाणे रे’’
देखना, 2 अक्टूबर के
दिनों में उधर मत झाँकना
-जी, हाँ, महाराज !

2 अक्टूबर वाले सप्ताह में
राजघाट भूलकर भी न जाना
उन दिनों तो वहाँ
तुम्हारी पिटाई भी हो सकती है
कुर्ता भी फट सकता है
हाँ, बाबा, अर्जुन नागा !