भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बसन्त बीत रहा है / को उन / कुमारी रोहिणी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=को उन |अनुवादक=कुमारी रोहिणी |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

07:01, 29 अक्टूबर 2024 के समय का अवतरण

त्याग दो सब कुछ ऐसे
जैसे फूल झड़ रहे हैं ।

जाने दो सब कुछ को ऐसे ही:
शाम की लहरें किसी को भी अपने पास नहीं रहने देतीं ।

समन्दर में लहरें
जेली मछली,
फ़िली मछली,
समुद्री स्क्वर्ट
रॉक मछली
चपटी मछली, समुद्री बैस
बैराकुडा
नानी के हाथ वाले पंखों जैसी दिखने वाली चपटी मछली,
और उसके ठीक नीचे तल में समुंद्री रत्नज्योतियाँ।
कहना ज़रूरी नहीं रह गया कि
जीवन, मृत्यु के बाद भी अनवरत चलता रहता है ।

इस पृथ्वी पर और अधिक पाप होने चाहिए ।
बसन्त बीत रहा है ।

मूल कोरियाई भाषा से अनुवाद : कुमारी रोहिणी