भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"वामपंथ के डेरे / राजेन्द्र गौतम" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राजेन्द्र गौतम |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 30: पंक्ति 30:
 
पूंजी तक आवारा हो जब
 
पूंजी तक आवारा हो जब
 
कौन मूल्य तब घेरे ।
 
कौन मूल्य तब घेरे ।
 +
 +
1996
 
</poem>
 
</poem>

03:20, 10 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण

दिल्ली के धुर दक्षिण में
अब वामपंथ के डेरे ।

क्रान्ति-ध्वजा फहराती थी
जिनके जलयानों पर
कृपा-दृष्टि उनकी है अब
निर्दय तूफानों पर
जिन पर चाबुक लहराते थे
अब उनके ही चेरे ।

कल तक लाल किताबें थे
दाबे जो बग़लों में
मार्क्स जुगाली करते हैं
अब डिक् के बंगलों में
सत्ता के गलियारों में ही
लगते उनके फेरे ।

खुला ‘गेट’ पच्छिमी हवा अब
आंधी बन कर उतरी
उनकी खल-खल हँसी गूँजती
इनकी उतरी चुनरी
पूंजी तक आवारा हो जब
कौन मूल्य तब घेरे ।

1996