भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तुम जहाँ भी अपना हाथ रक्खो / नजवान दरविश / मंगलेश डबराल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नजवान दरविश |अनुवादक=मंगलेश डबरा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:09, 10 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण
किसी को भी
प्रभु का क्रॉस नहीं मिला ।
जहाँ तक अवाम के क्रॉस की बात है
तुम्हें मिलेगा
सिर्फ़ उसका एक टुकड़ा
तुम जहाँ भी अपना हाथ रखो
(और उसे अपना वतन कह सको)
और मैं अपना क्रॉस बटोरता रहा हूँ
एक हाथ से
दूसरे हाथ तक
और एक अनन्त से
दूसरे अनन्त तक ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : मंगलेश डबराल