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"कुछ है, जो नहीं है / ईगर सिविरयानिन / अनिल जनविजय" के अवतरणों में अंतर

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किसी की आँखों में झाँकूँ, खो जाऊँ
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घर से निकल जाऊँ और वापिस नहीं लौटूँ
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और वहीं, वहीं कहीं हमेशा के लिए सो जाऊँ
  
 
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वसन्तकाल में गाती है कोयल
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किसी को सुनाती है कवि की कहानी 
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कुछ है, जो नहीं है इस दुनिया में, इस पल
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जो मुझसे यह कहता — ज़िन्दा रहो, जानी !
  
  
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Уйти из дома без возврата
 
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И там — там где-то — умереть.
 
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Кому-то что-то о поэте
 
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Споют весною соловьи.
 
Споют весною соловьи.

17:30, 12 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण

मेरा मन होता है कि कहीं चला जाऊँ
किसी की आँखों में झाँकूँ, खो जाऊँ
घर से निकल जाऊँ और वापिस नहीं लौटूँ
और वहीं, वहीं कहीं हमेशा के लिए सो जाऊँ

वसन्तकाल में गाती है कोयल
किसी को सुनाती है कवि की कहानी
कुछ है, जो नहीं है इस दुनिया में, इस पल
जो मुझसे यह कहता — ज़िन्दा रहो, जानी !


मूल रूसी भाषा से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
        Игорь Северянин
             Чего-то нет

Мне хочется уйти куда-то,
В глаза кому-то посмотреть,
Уйти из дома без возврата
И там — там где-то — умереть.

Кому-то что-то о поэте
Споют весною соловьи.
Чего-то нет на этом свете,
Что мне сказало бы: «Живи!..»