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"कोई और / सुशांत सुप्रिय" के अवतरणों में अंतर

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18:04, 21 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण

एक सुबह उठता हूँ
और हर कोण से
खुद को पाता हूँ अजनबी

आँखों में पाता हूँ
एक अजीब परायापन

अपनी मुस्कान
लगती है न जाने किसकी

बाल हैं कि
पहचाने नहीं जाते

अपनी हथेलियों में
किसी और की रेखाएँ पाता हूँ

मनोवैज्ञानिक बताते हैं कि
ऐसा भी होता है

हम जी रहे होते हैं
किसी और का जीवन

हमारे भीतर
कोई और जी रहा होता है