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बेप्पूर के सुल्तान की बकरी
चर गयी परंपरागत भाषा,कहन,कथन को
उसने नये मेमने जने
जीवित,मृत,मिमियाते,मौन
चंचल,शिथिल,चुप
उसने कसाईबाड़ा से इमामबाड़ा तक की कहानी लिखी
उसने आज़ाद होने और कैद होने की कहानी लिखी
उसने जीवन और मृत्यु दोनों की कथा में
बार-बार ढूंढ़ा धड़कता दिल
महकता पसीना
बेख़ौफ़ हौसलों को
प्राचीन बंदरगाह में किसी सुबह
समंदर के तट पर जब मैंने देखा बशीर को
तो देखते हुए
देखी उसकी आँखें
जो कई तरह के दुःख से सीझी
और कई तरह के जीवन से भरी हुई थी
वह थक जाता था
दिमाग़ी जिरहों से
वह थकता नहीं था लिखते-लिखते
जितना देखा
जितना महसूसा
उतना लिख पाने की तड़प रही उस में
मगर वह कहां लिख सका वह सबकुछ
इस छोटे से जीवन में
जो देखा उसने वह पूरी पृथ्वी थी
जो लिख सका एक पूरे जीवन में
वह बस एक फुर्र से उड़ गयी चिड़िया भर थी
जिसे कोई पिंजरे में कभी बाँध नहीं सका
वह आज भी तुम्हें मैंगोस्टीन के पेड़ के नीचे मिलेगा
वह तुम्हें कभी पागल
कभी विद्रोही
कभी चिंतक लगेगा
वह हँसी बुनेगा
वह कतरा-कतरा इश्क़ लिखेगा
वह रोएगा
और पूरा जीवन काग़ज़ पर उतर आएगा