"रसूल का गाँव / अनामिका अनु" के अवतरणों में अंतर
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बैठी चिड़िया | बैठी चिड़िया | ||
कभी-कभी भोर के कानों में | कभी-कभी भोर के कानों में | ||
− | अवार में मिट्टी कह जाती है | + | अवार में मिट्टी कह जाती है |
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− | + | शोरग़ुल के बीच | |
− | सिर्फ़ दो शब्द नसीहतों के | + | सिर्फ़ दो शब्द नसीहतों के |
− | कह जाते हैं रसूल, कानों में | + | कह जाते हैं रसूल, कानों में |
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मास्को की गलियों में उपले छपी दीवारें नहीं है | मास्को की गलियों में उपले छपी दीवारें नहीं है | ||
− | कहते | + | कहते थे रसूल के अब्बा |
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− | आँखों में रौशनी की पुड़िया खोलती त्साता गाँव की लड़कियाँ | + | आँखों में रौशनी की पुड़िया खोलती त्साता गाँव की लड़कियाँ |
आज भी आती होंगी माथे पर जाड़न की गठरी लेकर | आज भी आती होंगी माथे पर जाड़न की गठरी लेकर | ||
और सर्द पहाड़ियों पर कविता जन्म लेती होगी | और सर्द पहाड़ियों पर कविता जन्म लेती होगी | ||
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रसूल क्या आपके गाँव में | रसूल क्या आपके गाँव में | ||
− | अब भी वादियाँ हरी और घर पाषाणी हैं ? | + | अब भी वादियाँ हरी और घर पाषाणी हैं? |
− | कल ही की बात हो जैसे | + | कल ही की बात हो जैसे |
सिगरेट सुलगाते रसूल कहते हैं, | सिगरेट सुलगाते रसूल कहते हैं, | ||
अपनी ज़बान और मेहमान को हिक़ारत से मत देखना | अपनी ज़बान और मेहमान को हिक़ारत से मत देखना | ||
− | वरना बादल बिजली गिरेंगे हम पर, तुम पर, सब पर | + | वरना बादल बिजली गिरेंगे हम पर, तुम पर, सब पर |
− | + | ||
− | मैं रसूल | + | मैं रसूल हमज़ातोव |
− | आज भी दिल के दरवाज़े पर दस्तक देता हूँ खट-खट | + | आज भी दिल के दरवाज़े पर दस्तक देता हूँ खट-खट |
− | मांस और | + | मांस और बूज़ा परोसने का समय हो गया है उठ जाओ |
− | मैं | + | मैं अंदर आऊँ या मेरे बिना ही तुम्हारा काम चल जाएगा |
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12:07, 26 नवम्बर 2024 के समय का अवतरण
रसूल के गाँव की समतल छत पर
बैठी चिड़िया
कभी-कभी भोर के कानों में
अवार में मिट्टी कह जाती है
शोरग़ुल के बीच
सिर्फ़ दो शब्द नसीहतों के
कह जाते हैं रसूल, कानों में
मास्को की गलियों में उपले छपी दीवारें नहीं है
कहते थे रसूल के अब्बा
आँखों में रौशनी की पुड़िया खोलती त्साता गाँव की लड़कियाँ
आज भी आती होंगी माथे पर जाड़न की गठरी लेकर
और सर्द पहाड़ियों पर कविता जन्म लेती होगी
रसूल क्या आपके गाँव में
अब भी वादियाँ हरी और घर पाषाणी हैं?
कल ही की बात हो जैसे
सिगरेट सुलगाते रसूल कहते हैं,
अपनी ज़बान और मेहमान को हिक़ारत से मत देखना
वरना बादल बिजली गिरेंगे हम पर, तुम पर, सब पर
मैं रसूल हमज़ातोव
आज भी दिल के दरवाज़े पर दस्तक देता हूँ खट-खट
मांस और बूज़ा परोसने का समय हो गया है उठ जाओ
मैं अंदर आऊँ या मेरे बिना ही तुम्हारा काम चल जाएगा