भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"न्यारी-न्यारी धरती / नीरज दइया" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरज दइया |संग्रह=पाछो कुण आसी / न...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

16:15, 3 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण

घणा दिन हुयग्या
दिन कांई !
घणा-घणा बरस हुयग्या
आपां मिल्या कोनी !

छोटी-सी धरती
तर-तर फैलती जावै
एक धरती माथै
बणायली आपां
आपां-आपां री
न्यारी-न्यारी धरती।