भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"परस तुम्हारा जादू-टोना / अनामिका सिंह 'अना'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अनामिका सिंह 'अना' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:57, 3 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
छू मंतर हो गई उदासी
एक तुम्हारे आ जाने से ।
संवादों ने मन सहलाया
जो था तुम बिन निपट अलोना
सम्मोहन ने मूँदीं पलकें
परस तुम्हारा जादू टोना
बात बढ़ाई मन मनबढ़ ने
हौले टिके -टिके शाने से ।
गंध हवा की लहकी-बहकी
और तुम्हारा नेह निमंत्रण
इस ठीहे आ टूटे औचक
बरसों बरस निभाये जो प्रण
चाहत ने अनुबंध भरे फिर
लाज-शरम के तहखाने से ।
कौन रेह से धुल सकता है
रंग प्रेम का ऐसा चोखा
बिन वादों का बिन कसमों का
एक कथानक बिल्कुल ओखा
तुम मेरे फिर क्या मिलना है
दुनिया के खोने-पाने से ।