भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"नियति अभागी / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गरिमा सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह=क...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

21:40, 24 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण

हमने एकाकी रहने की
नियति अभागी पायी

अभिनंदन के लंबे-चौड़े
छंद न हम गा पाये
इसीलिये आँखों में हम
तिनके-सा खलते आये
गाँठों को सुलझाने में ही
उलझ-उलझ हम टूटे
जितना कसकर पकड़ा हमने
उतने रिश्ते छूटे

भरे उजाले में भी अब तो
साथ नहीं परछाई

अधिकारों की वसीयतों को
त्याग चुके हम कब के
भ्रम में सोये हुए नहीं हैं
जाग चुके हम कब के
तर्कों के तरकश ने लेकिन
सारे सच झुठलाये
आग लगाने वाले चेहरे
कहाँ सामने आये

हाथ उसी के जले हमेशा
जिसने आग बुझायी