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"सुख को भी तो गाओ भाई / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर
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जीवन में क्या दुख ही दुख है
सुख को भी तो गाओ भाई
हर पल बस पीड़ा गायन से
जीवन में अवसाद बढ़ेगा
आँसू की बहती नदिया में
सुख का तिनका कहाँ बचेगा
गीतों को मरहम-सा कर दो
ज़ख्मों की जो बनें दवाई
दुख के भीषण शिशिरकाल में
स्वर्णिम यादों का ज्यों कंबल
गीत बनें ममतामय लोरी
और बनें हारे का संबल
सुख-दुख तो आते रहते हैं
यहाँ नहीं कुछ भी स्थाई
गीतों में गेहूँ, गुलाब हो
अमराई हो, हरसिंगार हो
नदिया की कल-कल हो उनमें
पहली वर्षा की फुहार हो
कुछ मीठे हैं बोल ज़रूरी
बहुत हो चुकी हाथापाई