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"शहर वाली सियासत / गरिमा सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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22:01, 24 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण

अब शहर वाली सियासत
जंगलों तक आ गयी
हर तरफ़ मृगछाल का
आया चलन

कौन चिन्ता कर रहा है
पीर-आहों के लिए
कर्ज़ बाँटे जा रहे हैं
कत्लगाहों के लिए

शावकों को
आग में झौंका गया
हो रहा है
हर तरफ़ कैसा हवन

हरे वृक्षों के अचानक
पात पीले हो गये
भेड़, बकरी, मेमनों के
नख नुकीले हो गये

इस तरह नफ़रत
हवाओं में घुली
भेड़िये जैसा हुआ
खरगोश-मन

एक जंगल में कई
जंगल दिखाई दे रहे
आग बरसाते हुए
बादल दिखाई दे रहे

छोड़कर बंधुत्व,
अपनी एकता
भीड़ में शामिल हुए
मूँदे नयन।