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"यही हासिल ठहरा / नरेन्द्र जैन" के अवतरणों में अंतर

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05:35, 26 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण

 जो बात
शीशे की तरह साफ़ थी
उसमें एक बात की परछाईं उतर आई है
नदी बह रही है पूरे वेग से
छायाकार ठहरा एक उदास शाम का मेहमान
उसके कैमरे में
शव की तरह लेटा है एक दृश्य
और वह अभी
बाहर नहीं आया है

बरबाद शुदा जीवन का
यही हासिल ठहरा