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"कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक | + | कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए। |
− | मेरे ख़्याल से गुज़रे मेरे सुख़न | + | मेरे ख़्याल से गुज़रे मेरे सुख़न तक आए। |
− | जो आफ़ताब थे ऐसा हुआ तेरे आगे | + | जो आफ़ताब थे ऐसा हुआ तेरे आगे, |
− | तमाम नूर समेटा तो इक किरन तक | + | तमाम नूर समेटा तो इक किरन तक आए। |
− | कहे हैं लोग कि मेरी ग़ज़ल के पैकर | + | कहे हैं लोग कि मेरी ग़ज़ल के पैकर से, |
− | कभी कभार तेरी ख़ुशबू-ए-बदन तक | + | कभी कभार तेरी ख़ुशबू-ए-बदन तक आए। |
− | जो तू नहीं तो बता क्या हुआ है रात गए | + | जो तू नहीं तो बता क्या हुआ है रात गए, |
− | मेरी रगों में तेरे लम्स | + | मेरी रगों में तेरे लम्स चुभन तक आए। |
− | अब अश्क पोंछ ले जाकर कहो ये नरगिस | + | अब अश्क पोंछ ले जाकर कहो ये नरगिस को, |
− | अगर तलाशे-नज़र है मेरे चमन तक | + | अगर तलाशे-नज़र है मेरे चमन तक आए। |
− | तमाम रिश्ते भुलाकर मैं काट लूँगा इन्हें | + | तमाम रिश्ते भुलाकर मैं काट लूँगा इन्हें, |
− | अगर ये हाथ कभी मादरे-वतन तक | + | अगर ये हाथ कभी मादरे-वतन तक आए। |
− | जो इश्क़ रूठ के बैठे तो इस तरह हो 'अना' | + | जो इश्क़ रूठ के बैठे तो इस तरह हो 'अना', |
− | कि हुस्न आए मनाने तो सौ जतन तक | + | कि हुस्न आए मनाने तो सौ जतन तक आए। |
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21:07, 30 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
कभी वो शोख़ मेरे दिल की अंजुमन तक आए।
मेरे ख़्याल से गुज़रे मेरे सुख़न तक आए।
जो आफ़ताब थे ऐसा हुआ तेरे आगे,
तमाम नूर समेटा तो इक किरन तक आए।
कहे हैं लोग कि मेरी ग़ज़ल के पैकर से,
कभी कभार तेरी ख़ुशबू-ए-बदन तक आए।
जो तू नहीं तो बता क्या हुआ है रात गए,
मेरी रगों में तेरे लम्स चुभन तक आए।
अब अश्क पोंछ ले जाकर कहो ये नरगिस को,
अगर तलाशे-नज़र है मेरे चमन तक आए।
तमाम रिश्ते भुलाकर मैं काट लूँगा इन्हें,
अगर ये हाथ कभी मादरे-वतन तक आए।
जो इश्क़ रूठ के बैठे तो इस तरह हो 'अना',
कि हुस्न आए मनाने तो सौ जतन तक आए।