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"उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुत की / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | उस क़ादरे-मुतलक़ | + | उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुत की, |
− | इस ख़ाक के पुतले ने जसारत | + | इस ख़ाक के पुतले ने जसारत बहुत की। |
− | इस दिल ने अदा कर दिया हक़ होने का अपने | + | इस दिल ने अदा कर दिया हक़ होने का अपने, |
− | नफ़रत भी बहुत की है मुहब्बत भी बहुत | + | नफ़रत भी बहुत की है मुहब्बत भी बहुत की। |
− | काग़ज़ पे तो अपना ही क़लम बोल रहा है | + | काग़ज़ पे तो अपना ही क़लम बोल रहा है, |
− | मंचों पे लतीफ़ों ने सियासत भी बहुत | + | मंचों पे लतीफ़ों ने सियासत भी बहुत की। |
− | नादान सा दिखता था वो हुशियार बहुत था | + | नादान सा दिखता था वो हुशियार बहुत था, |
− | सीधा-सा बना रह के शरारत भी बहुत | + | सीधा-सा बना रह के शरारत भी बहुत की। |
− | मस्जिद में इबादत के लिए रोक रहा था | + | मस्जिद में इबादत के लिए रोक रहा था, |
− | आलिम था मगर उसने जहालत भी बहुत | + | आलिम था मगर उसने जहालत भी बहुत की। |
− | इंसाँ की न की क़द्र तो लानत में पड़ा है | + | इंसाँ की न की क़द्र तो लानत में पड़ा है, |
− | करने को तो शैतां ने इबादत भी बहुत | + | करने को तो शैतां ने इबादत भी बहुत की। |
मैं ही न सुधरने पे बज़िद था मेरे मौला | मैं ही न सुधरने पे बज़िद था मेरे मौला | ||
तूने तो मिरे साथ रियायत भी बहुत की | तूने तो मिरे साथ रियायत भी बहुत की | ||
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21:23, 30 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
उस क़ादरे-मुतलक़ से बग़ावत भी बहुत की,
इस ख़ाक के पुतले ने जसारत बहुत की।
इस दिल ने अदा कर दिया हक़ होने का अपने,
नफ़रत भी बहुत की है मुहब्बत भी बहुत की।
काग़ज़ पे तो अपना ही क़लम बोल रहा है,
मंचों पे लतीफ़ों ने सियासत भी बहुत की।
नादान सा दिखता था वो हुशियार बहुत था,
सीधा-सा बना रह के शरारत भी बहुत की।
मस्जिद में इबादत के लिए रोक रहा था,
आलिम था मगर उसने जहालत भी बहुत की।
इंसाँ की न की क़द्र तो लानत में पड़ा है,
करने को तो शैतां ने इबादत भी बहुत की।
मैं ही न सुधरने पे बज़िद था मेरे मौला
तूने तो मिरे साथ रियायत भी बहुत की