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"ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है / 'अना' क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | ये शबे-अख़्तरो-क़मर | + | ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है, |
− | एक हंगामा है मगर चुप | + | एक हंगामा है मगर चुप है। |
− | चल दिए क़ाफ़िले कयामत के | + | चल दिए क़ाफ़िले कयामत के, |
− | और दिल है कि बेख़बर चुप | + | और दिल है कि बेख़बर चुप है। |
− | + | तेरे गेसू और इस क़दर बरहम, | |
− | इक तमाशा और इस क़दर चुप | + | इक तमाशा और इस क़दर चुप है। |
− | पहले कितनी पुकारें आती थीं | + | पहले कितनी पुकारें आती थीं, |
− | चल पड़ा हूँ तो रहगुज़र | + | चल पड़ा हूँ तो रहगुज़र है। |
− | बस ज़बाँ हाँ कहे ये ठीक नहीं | + | बस ज़बाँ हाँ कहे ये ठीक नहीं, |
− | क्या हुआ क्यों तिरी नज़र चुप | + | क्या हुआ क्यों तिरी नज़र चुप है। |
− | साथ तेरे ज़माना बोलता था | + | साथ तेरे ज़माना बोलता था, |
− | तू नहीं है तो हर बशर | + | तू नहीं है तो हर बशर चुप है। |
− | बर्क़ | + | बर्क़ ख़ामोश, ज़मज़मे ख़ामोश, |
− | शायरी का हरिक हुनर चुप | + | शायरी का हरिक हुनर चुप है। |
राज़ कुछ तो है इस ख़मोशी का | राज़ कुछ तो है इस ख़मोशी का | ||
बात कुछ तो है, तू अगर चुप है | बात कुछ तो है, तू अगर चुप है | ||
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22:15, 30 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
ये शबे-अख़्तरो-क़मर चुप है,
एक हंगामा है मगर चुप है।
चल दिए क़ाफ़िले कयामत के,
और दिल है कि बेख़बर चुप है।
तेरे गेसू और इस क़दर बरहम,
इक तमाशा और इस क़दर चुप है।
पहले कितनी पुकारें आती थीं,
चल पड़ा हूँ तो रहगुज़र है।
बस ज़बाँ हाँ कहे ये ठीक नहीं,
क्या हुआ क्यों तिरी नज़र चुप है।
साथ तेरे ज़माना बोलता था,
तू नहीं है तो हर बशर चुप है।
बर्क़ ख़ामोश, ज़मज़मे ख़ामोश,
शायरी का हरिक हुनर चुप है।
राज़ कुछ तो है इस ख़मोशी का
बात कुछ तो है, तू अगर चुप है