भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चाँद की तरह था हमारा प्रेम / मिगुएल हेरनान्देज़ / शुचि मिश्रा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मिगुएल हेरनान्देज़ |अनुवादक=शुच...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

00:47, 31 दिसम्बर 2024 का अवतरण

हम ताड़ के दो वृक्ष थे जो
बाँहों में न भर सके इक-दूजे को
कि हमारे बीच चाँद की तरह था हमारा प्रेम

दो देहों के बीच की अंतरंग बुदबुदाहट
जैसे लोरी में तब्दील हुई
किन्तु काँटों में उलझकर टूट गई
हमारी कोमल और नाज़ुक आवाज़ें... भर्राई-सी
पत्थर के मानिन्द जम गए हमारे अधर
आलिंगन की आकांक्षा में परस्पर
हिल गई हमारी मांसपेशियाँ
जल उठी अस्थियाँ
स्पर्श के सपन में
इक-दूजे को छूने के जतन में
इक-दूजे की बाँहों में ही
दम तोड़ दिया बाँहों ने हमारी
चाँद की तरह था हमारा प्रेम जिसने
निगल लिया हमारी नितान्त एकाकी देहों को

हम खोजते हैं अब इक-दूजे को
प्रेत की तरह और देखते हैं कि
कितने बिखर चुके हैं हम
एक दूजे से दूर रहकर !

अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा

और लीजिए अब यही कविता मूल स्पानी में पढ़िए