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"मौन प्रीत / गब्रिऐला मिस्त्राल / शुचि मिश्रा" के अवतरणों में अंतर
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01:29, 31 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
मुझमें वितृष्णा होती तो मैंने
नफ़रत की होती आपसे
बारहा लफ़्ज़ों के जरिए
ज़रूरी तौर पर भी
किन्तु मुझे प्यार है आपसे
और मेरे प्यार ने पाया
कि हर एक वाक्य
गड्ड-मड्ड है और ना-भरोसेमन्द
प्रीत यह तुम
मौन में नहीं सुनना चाहते
किन्तु यह इतने अन्तस से आ रही
जैसे आग का सैलाब
नाकामयाब और लर्ज़िश
गले और छाती तक पहुँचते-पहुँचते
तालाब सरहद तोड़ने तक लबालब है
मैं आपको लगती हूँ बसन्त में पतझड़ जैसी
मेरी मनहूस ख़ामोशी से है यह सब
और बदतर है मेरी मौत से भी !
'अँग्रेज़ी से अनुवाद : शुचि मिश्रा
अब अँग्रेज़ी में यही कविता पढ़ें