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"कभी हां कुछ मिरे भी शेर के पैकर में रहते हैं / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर | + | कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर में रहते हैं |
वही जो रंग, तितली के सुनहरे पर में रहते हैं । | वही जो रंग, तितली के सुनहरे पर में रहते हैं । | ||
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हैं जितने भी ग़ज़ल वाले, इसी चक्कर में रहते हैं । | हैं जितने भी ग़ज़ल वाले, इसी चक्कर में रहते हैं । | ||
− | जिधर देखो वहीं नफ़रत के आसेबाँ | + | जिधर देखो वहीं नफ़रत के आसेबाँ का साया है, |
मुहब्बत के फ़रिश्ते अब कहाँ किस घर में रहते हैं । | मुहब्बत के फ़रिश्ते अब कहाँ किस घर में रहते हैं । | ||
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यक़ीं उस दम हुआ, के दिल भी कुछ पत्थर में रहते हैं । | यक़ीं उस दम हुआ, के दिल भी कुछ पत्थर में रहते हैं । | ||
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12:37, 31 दिसम्बर 2024 का अवतरण
कभी हाँ कुछ, मेरे भी शेर पैकर में रहते हैं
वही जो रंग, तितली के सुनहरे पर में रहते हैं ।
निकल पड़ते हैं जब बाहर, तो कितना ख़ौफ़ लगता है,
वही कीड़े, जो अक्सर आदमी के सर में रहते हैं ।
यही तो एक दुनिया है, ख़्यालों की या ख़्वाबों की,
हैं जितने भी ग़ज़ल वाले, इसी चक्कर में रहते हैं ।
जिधर देखो वहीं नफ़रत के आसेबाँ का साया है,
मुहब्बत के फ़रिश्ते अब कहाँ किस घर में रहते हैं ।
वो जिस दम भर के उसने आह, मुझको थामना चाहा,
यक़ीं उस दम हुआ, के दिल भी कुछ पत्थर में रहते हैं ।