"किससे पूछूं ऐ फ़लक़ हालात का सूरज है कौन / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर
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− | किससे पूछूँ ऐ फ़लक हालात का सूरज है कौन | + | किससे पूछूँ ऐ फ़लक हालात का सूरज है कौन, |
− | तिलमिलाता क्यों उठा है, बात का सूरज है | + | तिलमिलाता क्यों उठा है, बात का सूरज है कौन। |
− | दे गया आँखों को सपने, ले गया आँखों का नूर | + | दे गया आँखों को सपने, ले गया आँखों का नूर, |
− | तू ज़मीं की तह में डूबा, रात का सूरज है | + | तू ज़मीं की तह में डूबा, रात का सूरज है कौन। |
− | तेरे जाते ही ये ज़र्रे आसमां पैमा हुए | + | तेरे जाते ही ये ज़र्रे आसमां पैमा हुए, |
− | सब से कहते हैं बता जुल्मात | + | सब से कहते हैं बता जुल्मात का सूरज है कौन। |
− | है कहाँ अब मशरिक़ो-मग़रिब | + | है कहाँ अब मशरिक़ो-मग़रिब का वो ताबिन्दागर, |
− | इन घटाओं के तले बरसात का सूरज है | + | इन घटाओं के तले बरसात का सूरज है कौन। |
− | आखि़रश उसका भी सर ख़ू शफ़क़ | + | आखि़रश उसका भी सर ख़ू शफ़क़ रंग जायेगा, |
− | ये जहाँगीरी है किसकी ज़ात का सूरज है | + | ये जहाँगीरी है किसकी ज़ात का सूरज है कौन। |
− | रौशनी के पर समेटे शाम की दहलीज़ पर | + | रौशनी के पर समेटे शाम की दहलीज़ पर, |
− | ज़िन्दगी के आख़री लम्हात का सूरज है | + | ज़िन्दगी के आख़री लम्हात का सूरज है कौन। |
− | कच्ची फ़सलों का लहू बरसों से पी जाता है क्यों | + | कच्ची फ़सलों का लहू बरसों से पी जाता है क्यों, |
− | बादलों में छुप के बैठा घात का सूरज है | + | बादलों में छुप के बैठा घात का सूरज है कौन। |
− | ये दहकती | + | ये दहकती रेत और ये आबला पाई तिरी, |
− | ऐ ‘अना’ दिल में तिरे जज़्बात का सूरज है | + | ऐ ‘अना’ दिल में तिरे जज़्बात का सूरज है कौन। |
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13:05, 31 दिसम्बर 2024 के समय का अवतरण
किससे पूछूँ ऐ फ़लक हालात का सूरज है कौन,
तिलमिलाता क्यों उठा है, बात का सूरज है कौन।
दे गया आँखों को सपने, ले गया आँखों का नूर,
तू ज़मीं की तह में डूबा, रात का सूरज है कौन।
तेरे जाते ही ये ज़र्रे आसमां पैमा हुए,
सब से कहते हैं बता जुल्मात का सूरज है कौन।
है कहाँ अब मशरिक़ो-मग़रिब का वो ताबिन्दागर,
इन घटाओं के तले बरसात का सूरज है कौन।
आखि़रश उसका भी सर ख़ू शफ़क़ रंग जायेगा,
ये जहाँगीरी है किसकी ज़ात का सूरज है कौन।
रौशनी के पर समेटे शाम की दहलीज़ पर,
ज़िन्दगी के आख़री लम्हात का सूरज है कौन।
कच्ची फ़सलों का लहू बरसों से पी जाता है क्यों,
बादलों में छुप के बैठा घात का सूरज है कौन।
ये दहकती रेत और ये आबला पाई तिरी,
ऐ ‘अना’ दिल में तिरे जज़्बात का सूरज है कौन।