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"बांसुरी / नरेश सक्सेना" के अवतरणों में अंतर

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जब-जब बजाता हूं बांसुरी
 
जब-जब बजाता हूं बांसुरी
 
तो राग चाहे जो हो
 
तो राग चाहे जो हो
उसमें थोड़ों की भूख
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उसमें कीड़ों की भूख
 
और बांसों का रोना भी सुनायी देता है.
 
और बांसों का रोना भी सुनायी देता है.
 
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10:42, 20 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

बांसुरी के इतिहास में
उन कीड़ों का कोई जिक्र नहीं
जिन्होंने भूख मिटाने के लिए
बांसों में छेद कर दिए थे.

और जब-जब हवा उन छेदों से गुजरती
तो बांसों का रोना सुनायी देता

कीड़ों को तो पता ही नहीं था
कि वे संगीत के इतिहास में हस्तक्षेप
कर रहे हैं
और एक ऐसे वाद्य का आविष्कार
जिसमें बजाने वाले की सांसें बजती हैं.

मैंने कभी लिखा था
कि बांसुरी में सांस नहीं बजती
बांस नहीं बजता
बजाने वाला बजता है

अब
जब-जब बजाता हूं बांसुरी
तो राग चाहे जो हो
उसमें कीड़ों की भूख
और बांसों का रोना भी सुनायी देता है.