भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"दौड़ जाने दो क्षण भर / इला कुमार" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
छो (Added हूई)
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
  
  
आपकी स्नेह भरी छांव को  झुठलाती मैं
+
आपकी स्नेह भरी छाँव को  झुठलाती मैं
  
 
नन्हीं चिड़िया सी घर में इधर-उधर फुदक जाती मैं
 
नन्हीं चिड़िया सी घर में इधर-उधर फुदक जाती मैं
पंक्ति 16: पंक्ति 16:
 
पर
 
पर
  
उसी छांव के सहारे पलती बढती
+
उसी छाँव के सहारे पलती बढती
  
जाने कब हूई घने वृक्ष जैसी बड़ी मैं
+
जाने कब हुई घने वृक्ष जैसी बड़ी मैं
  
 
पता नहीं बीते कितने बरस
 
पता नहीं बीते कितने बरस
पंक्ति 24: पंक्ति 24:
 
भूल गए सारे के सारे, पुराने पल
 
भूल गए सारे के सारे, पुराने पल
  
इस क्षण ऊंचे लोहे के जालीदार गेट को देख
+
इस क्षण ऊँचे लोहे के जालीदार गेट को देख
  
 
मन क्यों अकुलाया  
 
मन क्यों अकुलाया  
पंक्ति 37: पंक्ति 37:
 
कोई जादूगर  
 
कोई जादूगर  
  
ना रोको नहीं मुझे
+
ना, रोको नहीं मुझे
  
 
अभी क्षणांश में लौट आऊंगी
 
अभी क्षणांश में लौट आऊंगी
  
पर इस पल दौड़ जाने दो मुझे बाहें फैलाए
+
पर इस पल दौड़ जाने दो मुझे बाँहें फैलाए
  
 
फूली फ्राक के घेरे के संग-संग
 
फूली फ्राक के घेरे के संग-संग
  
बचपन कि कच्ची पक्की गलियों में क्षण भर
+
बचपन कि कच्ची-पक्की गलियों में क्षण-भर

14:25, 25 नवम्बर 2008 का अवतरण

दौड़ जाने दो क्षण भर


आपकी स्नेह भरी छाँव को झुठलाती मैं

नन्हीं चिड़िया सी घर में इधर-उधर फुदक जाती मैं


पर

उसी छाँव के सहारे पलती बढती

जाने कब हुई घने वृक्ष जैसी बड़ी मैं

पता नहीं बीते कितने बरस

भूल गए सारे के सारे, पुराने पल

इस क्षण ऊँचे लोहे के जालीदार गेट को देख

मन क्यों अकुलाया

एक बार झूलने को हुआ तत्पर


मुड़कर पीछे देखने पर ज्यों

निहारता है मुझे मीठी निगाहों से

कोई जादूगर

ना, रोको नहीं मुझे

अभी क्षणांश में लौट आऊंगी

पर इस पल दौड़ जाने दो मुझे बाँहें फैलाए

फूली फ्राक के घेरे के संग-संग

बचपन कि कच्ची-पक्की गलियों में क्षण-भर