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"क्या पता था दे रही दस्तक सुहानी भोर है / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर
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क्या पता था दे रही दस्तक सुहानी भोर है। | क्या पता था दे रही दस्तक सुहानी भोर है। |
22:42, 26 जनवरी 2025 के समय का अवतरण
क्या पता था दे रही दस्तक सुहानी भोर है।
होने वाली रोशनी का रुख़ हमारी ओर है।
भरभरा कर बन्दिशों का हर क़िला कल शब ढ़हा,
कितनी ताकतवर मुहब्बत की ख़ुदा ये डोर है।
इतनी ख़ामोशी से वो दिल में मेरे दाखि़ल हुये,
खेत में सरसों के जैसे दर बनाता मोर है।
आ गये दहशत में सब ख़ामोश उनको देखकर,
हमने पाया उनकी चुप्पी में ग़ज़ब का शोर है।
ज़िन्दगी इक ख़त से बदली देखकर बोला क़लम,
वाक़ई ख़ामोश लफ़्जों में भी कितना ज़ोर है।
पड़ने देना अब न अश्क़ों पर ज़माने की नज़र,
लोग समझेंगे वगरना आदमी कमज़ोर है।
रिश्ता ये ‘विश्वास’ टूटेगा न अब, वादा करो,
ख़्वाब में भी नम न होगी अब नयन की कोर है।