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"आ नहीं सकती है लग़्िजश चाहकर ईमान में / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर

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22:50, 26 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

आ नहीं सकती है लग़्िजश चाहकर ईमान में,
खुद को रख पायें अगर हम पैकरे इंसान में।

दीजिए जिस दिन बिठा, घर एक दस्तरख्वान पर,
फिर दिये जलने लगेंगे साथियों तूफान में।

मुल्क से अपने मुहब्बत जिनके दिल में है नहीं,
करिये सरहद पार, मत रखिये उन्हें जिन्दान में।

हर बशर को चाहिए वादा तिरंगे से करें,
अब न जिन्दा रह सकेगा ज़ुल्म हिन्दुस्तान में।

मुल्क मज़हब से बड़ा है सच समझ जो भी गया,
वो न हिचका गीत वन्देमातरम् के गान में।

रू-ब-रू होने पर खो दें होश ग़म की आँधियाँ,
इतनी कुव्वत चाहिए होनी मियाँ मुस्कान में।

सौ नमन, जिनकी बदौलत हमको आज़ादी मिली,
है निछावर ये ग़ज़ल ‘विश्वास’ उनकी शान में।