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"न शोहरत के, न दौलत के, दिखा सपने न जन्नत के / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर

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23:25, 27 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

न शोहरत के, न दौलत के, दिखा सपने न जन्नत के।
जो खु़श हो बख्श मौला मुझको बस दो दिन मुहब्बत के।

सलीके़ से मुआफी माँग या फिर कर मुआफ उसको,
बचा ले ज़िन्दगी चक्कर लगाने से अदालत के।

लुटेरे बाज आते लूटने से कब कहाँ बोलो,
जरूरी हर बशर को सीख ले नुस्खे हिफा़जत के।

बहुत दिन बाद ये जाना हजारों इत्र से बढ़कर,
महक दिलकश निकलती दोस्त पैसों से मशक्कत के।

मटकती चाल पर बहके न दहके बाल गालों पर,
नजर कमजोर है पढ़ने में कुछ अन्दाज औरत के।

खता होती न हमसे तख्त पर तुझको बिठाने की,
न पड़ते देखने इस गाँव को हालात हैरत के।

मुताबिक वक़्त चलना है नज़र मंज़िल पर रखनी है,
नहीं ‘विश्वास’ रखना अब भरोसे ख़ुद को क़िस्मत के।