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"खाक़ में मिल गए हम अगर देखिए / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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खाक़ में मिल गए हम अगर देखिए
 
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होने पाए न उनको खबर देखिए
 
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आप देते रहे हैं दुआएँ हमें  
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उन दुआओं का हम पर असर देखिए
 
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मुस्कुरा कर फक़त इक नज़र देखिए
 
मुस्कुरा कर फक़त इक नज़र देखिए
  
अब लहू दिल में बाकी नहीं, जो बहे  
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खोलकर, मेरा ज़ख्मे-जिग़र देखिए
 
खोलकर, मेरा ज़ख्मे-जिग़र देखिए
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देखकर गाल पर तिल, तड़क ही गया
 
देखकर गाल पर तिल, तड़क ही गया
 
हुस्न का आइने पर असर देखिए
 
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आग लग जाए न तन बदन में कहीं
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आग लग जाएगी तन-बदन में मिरे
 
छू न होटों से जाएँ अधर देखिए
 
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उसने हँसकर कहा, फिर मिलेंगे 'रक़ीब'
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कह दिया फिर मिलेंगे 'रक़ीब' अब कभी
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अब तो होने को आई सहर देखिए
 
          
 
          
 
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14:27, 28 जनवरी 2025 का अवतरण


खाक़ में मिल गए हम अगर देखिए
होने पाए न उनको खबर देखिए

आप देते रहे हैं दुआएँ हमें
उन दुआओं का हम पर असर देखिए

रेगजारों में भी फूल खिल जाएँगे
मुस्कुरा कर फक़त इक नज़र देखिए

अब लहू दिल में बाकी नहीं, जो बहे
खोलकर, मेरा ज़ख्मे-जिग़र देखिए

देखकर गाल पर तिल, तड़क ही गया
हुस्न का आइने पर असर देखिए

आग लग जाएगी तन-बदन में मिरे
छू न होटों से जाएँ अधर देखिए

कह दिया फिर मिलेंगे 'रक़ीब' अब कभी
अब तो होने को आई सहर देखिए