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"खाक़ में मिल गए हम अगर देखिए / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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− | अब लहू दिल में | + | अब लहू दिल में बाक़ी नहीं, जो बहे |
− | खोलकर, मेरा | + | खोलकर, मेरा ज़ख़्म-ए-जिगर देखिए |
देखकर गाल पर तिल, तड़क ही गया | देखकर गाल पर तिल, तड़क ही गया |
15:19, 28 जनवरी 2025 के समय का अवतरण
ख़ाक में मिल गए हम अगर देखिए
होने पाए न उनको खबर देखिए
आप देते रहे हैं दुआएँ हमें
उन दुआओं का हम पर असर देखिए
रेगज़ारों में भी फूल खिल जाएँगे
मुस्कुरा कर फ़क़त इक नज़र देखिए
अब लहू दिल में बाक़ी नहीं, जो बहे
खोलकर, मेरा ज़ख़्म-ए-जिगर देखिए
देखकर गाल पर तिल, तड़क ही गया
हुस्न का आइने पर असर देखिए
आग लग जाएगी तन-बदन में मिरे
छू न होटों से जाएँ अधर देखिए
कह दिया फिर मिलेंगे 'रक़ीब' अब कभी
अब तो होने को आई सहर देखिए