भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चेतना के स्वर मधुर झंकारना अच्छा लगा / कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कृपाशंकर श्रीवास्तव 'विश्वास' |अन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

22:42, 28 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

चेतना के स्वर मधुर झंकारना अच्छा लगा।
चर अचर में प्यार फलना फूलना अच्छा लगा।

भूमि से आकाश तक पावन मिलन के पर्व पर,
सृष्टि को शृंगार करते देखना अच्छा लगा।

बाग, वन, फुलवारियों में नृत्य करती तितलियाँ,
मस्त भँवरों का सुखद गुंजारना अच्छा लगा।

जिनके चेहरों पर दिखी हमदम सजी संजीदगी,
उनके आँगन में ख़ुशी का झूमना अच्छा लगा।

तोड़कर कसमें मिले जब दोस्त दो हँसकर गले,
उनकी कसमों का हमें यूँ टूटना अच्छा लगा।

ठूँठ में अंकुर उगाने चल पड़ी संजीवनी,
ध्वंस को, निर्माण का ललकारना अच्छा लगा।

हर्षमय उल्लासमय ‘विश्वास’ सारी रात भर,
कल नदी में चाँदनी का तैरना अच्छा लगा।