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नमन सकल ब्रह्माड कर रहा, बोल रहा जय राम की।
अक्षुण रही, रहेगी अक्षुण, कीर्ति अयोध्या धाम की।

नमन सभी का धाम चले जो, धर्म ध्वजा संकल्प लिए,
बाँध लिया केसरिया सर पर, फिक्ऱ न की परिणाम की।

नमन उन्हें भी करता भारत, लम्बित वाद विवादों को,
जिनके बल पौरुष ने बख्शी, तिथि सम्पूर्ण विराम की।

साक्षी है इतिहास विश्व का, स्थिति रही विषम या सम,
जल थल नभ गूँजे जयकारे, घटी न गुरुता राम की।

नमन अयोध्या के कण-कण को, आज सभी दिक्पाल करें,
राम लला का गौरव गाती, जिह्वा दक्षिण वाम की।

मित्र ‘सुदिन’ उल्लास हर्ष का, जो ले आये नमन उन्हें,
हर्षित तुलसीदास गा रहे महिमा रघुवर नाम की।

चौदह भुवन भये ज्योर्तिमय, शंखध्वनि ‘विश्वास’ करो,
भक्ति, प्रेम, बलिदान, शौर्य को, आई घड़ी प्रणाम की।