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"कल जो कहते रहे आएंगे न जाने वाले / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

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बेस क़ीमत है यहाँ बूँद भी इक पानी की
 
बेस क़ीमत है यहाँ बूँद भी इक पानी की
याद रक्खें इसे, बेवज़ह बहाने वाले
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याद रक्खें इसे, बेकार बहाने वाले
  
शम्स ता क़मर, ज़मीं, झील कि दरिया, पर्वत
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झील पर्वत ये ज़मीं तारे हों या शम्सो क़मर
 
हैं मनाज़िर ये सभी दिल को लुभाने वाले
 
हैं मनाज़िर ये सभी दिल को लुभाने वाले
  
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हैं सरे राह दिये रोज़ जलाने वाले
 
हैं सरे राह दिये रोज़ जलाने वाले
  
क़िस्सा-ए-जीस्त सुनाए हैं बहुत तुझको 'रक़ीब'
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क़िस्सा-ए-जीस्त 'रक़ीब' उस को सुनाए हैं बहुत
अब जो बाक़ी हैं, नहीं तुझको सुनाने वाले
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अब जो बाक़ी हैं, किसी को न सुनाने वाले
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00:45, 29 जनवरी 2025 के समय का अवतरण

कल जो कहते रहे आएंगे न जाने वाले
मुन्तज़िर वो भी हैं, वो आज हैं आने वाले

बेस क़ीमत है यहाँ बूँद भी इक पानी की
याद रक्खें इसे, बेकार बहाने वाले

झील पर्वत ये ज़मीं तारे हों या शम्सो क़मर
हैं मनाज़िर ये सभी दिल को लुभाने वाले

कुछ नहीं बदला है क्या?, हाँ! तो बदल दो ये भी
साल-दर-साल सितम क्यों हैं पुराने वाले

तल्ख़ लहजे से न कर अपनों को तू बेगाना
रूठ जाएँ न कहीं तुझको मनाने वाले

ऐ ख़ुदा उनके मुक़द्दर भी मुनव्वर कर दे
हैं सरे राह दिये रोज़ जलाने वाले

क़िस्सा-ए-जीस्त 'रक़ीब' उस को सुनाए हैं बहुत
अब जो बाक़ी हैं, किसी को न सुनाने वाले