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"जब दुबारा कभी मिलूँ उससे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर
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अपनी पहली ग़ज़ल सुनूँ उससे | अपनी पहली ग़ज़ल सुनूँ उससे | ||
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किस तरह से भला लडूँ उससे | किस तरह से भला लडूँ उससे | ||
− | कट के आयी पतंग | + | कट के आयी पतंग कहती है |
है अनाड़ी तो क्यों उडूं उससे | है अनाड़ी तो क्यों उडूं उससे | ||
− | जो नहीं | + | जो नहीं है हमारे क़ाबिल अब |
दूर ही दूर मैं रहूँ उससे | दूर ही दूर मैं रहूँ उससे | ||
− | फ़ैसला मैंने कर लिया है 'रक़ीब' | + | फ़ैसला मैंने कर लिया है 'रक़ीब' |
कुछ न पूछूँ न कुछ कहूँ उससे | कुछ न पूछूँ न कुछ कहूँ उससे | ||
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22:26, 29 जनवरी 2025 के समय का अवतरण
जब दुबारा कभी मिलूँ उससे
अपनी पहली ग़ज़ल सुनूँ उससे
कुछ तो होगा सबब जुदाई का
पूछ कर आज क्या करूँ उससे
जब वो बाहों में मेरी आ जाए
इक सबक प्यार का पढ़ूँ उससे
जिसके एहसान में दबा हूँ मैं
किस तरह से भला लडूँ उससे
कट के आयी पतंग कहती है
है अनाड़ी तो क्यों उडूं उससे
जो नहीं है हमारे क़ाबिल अब
दूर ही दूर मैं रहूँ उससे
फ़ैसला मैंने कर लिया है 'रक़ीब'
कुछ न पूछूँ न कुछ कहूँ उससे